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सांसारिक माया और भक्ति

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  सांसारिक माया   समाज मे आज भौतिकतावाद इतना सर चढ़ के बोल रहा है जितना इतिहास मे कभी नहीं था | यह याद रखिये जितना भौतिकतावाद बढेगा उतना समाज मे दुख और अज्ञान बढेगा | भगवत गीता मे तीन गुणों के अलग अलग फल बताये गए है | सतोगुण का फल है  ज्ञान, शांति, सुख  | रजोगुण का फल है दुख और तमोगुण का फल है अज्ञान | भौतिकतावाद मे मानव के सभी कर्म शरीर पोषण और सांसारिक सुखो की प्राप्ति हेतु सिमित हो जाते है, और इसके लिए जो कर्म किये जाते है वे रजौगुनी और तमोगुनी प्रधान होते है, और जैसा की ऊपर कहा गया है की राजोगुण का फल दुख और तमोगुण का अज्ञान होता है तो संसार मे ज्यादातर दुख और अज्ञान ही दिखाई पड़ते है | भले ही आज आधुनिक समाज मे ज्ञान की नई नई शाखा जन्म ले रही है जो पहले नही थी जैसे की विज्ञानं इतिहास समाजशात्र, फिलोसोफी, इत्यादि यहाँ तक की अध्यात्म की भी अलग अलग शाखाएं लोग बनाने लगे है फिर भी व्यक्ति अज्ञानी और दुखी क्यों है? इसका कारण है कर्मो मे सतोगुण का आभाव और राजोगुण एवं तमोगुण का वर्चस्व | इसी को हम सांसारिक माया कहते है |      सांसारिक माया तब प्रभावी हो...

जमीन के निचे साँस लेता वो शहर - सांभर

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जमीन के निचे साँस लेता वो शहर - सांभर नमस्कार दोस्तों  आज आपको सुनाता हु एक ऐसे भूतिया शहर की कहानी जो पिछले 1300 सालो से जमीन में साँस ले रहा है।   एक ऐसा शहर जो एक सन्यासी के श्राप से रातोंरात उलट पलट गया, एक ऐसा शहर जिसे तांत्रिकों का hub माना जाता था, एक ऐसा शहर जो अपने आप में एक संस्कृति   था , एक ऐसा शहर जो किसी हड़प्पा सभ्यता से किसी मामले में काम नहीं था ,एक ऐसा शहर जिसे किसी एक पीर बाबा या संत या सन्यासी के तात्कालिक क्रोध का ग्रास बनना पड़ा। ये सब आपको पढ़ने में फिल्मी लगता होगा ,इसका किसी पुस्तक में विवरण भी मुश्किल से आपको मिल जायेगा।मै नहीं जानता की गूगल या विकिपीडिया पर इसके बाबत जानकारी क्यों उपलब्ध नहीं है   लेकिन जो आज आप पढ़ेंगे वो सोलह आने सच है। जिसकी पुष्टि न्यूज़ 24 के एक कार्यक्रम में की गयी है जिसका शीर्षक है "खंडहर में   साँस लेता वो शहर"। आज के सांभर शहर के पास ही १३०० साल पुराने सांभर शहर के अवशेष देखे जा सकते है। उसके अवशेष ऐसे जान पड़ते हो जैसे घरो की छते निचे जमीन पर आ गयी हो। उसका औराआज भी किसी प्राचीन सुविकसित सभ्यता से कम नहीं लगता...