सांसारिक माया और भक्ति

 सांसारिक माया 


 समाज मे आज भौतिकतावाद इतना सर चढ़ के बोल रहा है जितना इतिहास मे कभी नहीं था | यह याद रखिये जितना भौतिकतावाद बढेगा उतना समाज मे दुख और अज्ञान बढेगा |

भगवत गीता मे तीन गुणों के अलग अलग फल बताये गए है | सतोगुण का फल है  ज्ञान, शांति, सुख  | रजोगुण का फल है दुख और तमोगुण का फल है अज्ञान | भौतिकतावाद मे मानव के सभी कर्म शरीर पोषण और सांसारिक सुखो की प्राप्ति हेतु सिमित हो जाते है, और इसके लिए जो कर्म किये जाते है वे रजौगुनी और तमोगुनी प्रधान होते है, और जैसा की ऊपर कहा गया है की राजोगुण का फल दुख और तमोगुण का अज्ञान होता है तो संसार मे ज्यादातर दुख और अज्ञान ही दिखाई पड़ते है | भले ही आज आधुनिक समाज मे ज्ञान की नई नई शाखा जन्म ले रही है जो पहले नही थी जैसे की विज्ञानं इतिहास समाजशात्र, फिलोसोफी, इत्यादि यहाँ तक की अध्यात्म की भी अलग अलग शाखाएं लोग बनाने लगे है फिर भी व्यक्ति अज्ञानी और दुखी क्यों है? इसका कारण है कर्मो मे सतोगुण का आभाव और राजोगुण एवं तमोगुण का वर्चस्व | इसी को हम सांसारिक माया कहते है |

     सांसारिक माया तब प्रभावी हो जाती है जब व्यक्ति अपने अस्तित्व को शरीर तक सिमित कर लेता है | ध्रुवीय प्रदेश मे जल के ऊपर बर्फ की मोटी परत चढ़ जाती है, उस जल मे जीने वाले जीवो को लगता है की यही हमारा संसार है इसके ऊपर कुछ नही वह उसी मे सुखी दुखी हस्ते खेलते रोते बिलगते रहते है, लेकिन उनको एक बार भी यह एहसास नही होता की इस बर्फ की मोटी चादर के पार क्या होगा? उसको तोड़कर असली दुनिया मे आने की तो दूर वो उस बर्फ की चादर को ठोंकर मारने की भी नही सोच सकते जिस तरह से भगवान राम के सिवा शिव धनुष को तोड़ने का तो दूर कोई उसे हिला भी न पाया ठीक उसी तरह सच्चे योगी के सिवा कोई इस माया को तोड़ नही सकता |

     यह बर्फ की चादर ही सांसारिक माया की परत है इसे तोड़कर हमें अपने असली अस्तित्व को पहचानना है एवं अपने अनंत प्रवास की ओर बढ़ना है | देह नाश के बाद सबकुछ ख़त्म नही हो जाता यह हमको जानना है | वरन यात्रा तो उसको बाद ही शुरू होती है | बर्फ के निचे के पानी मे बार बार आपको डुबोया जायेगा तब तक, जब तक आप खुद से उसे तोड़कर ऊपर आना सिख नही लेते |

भक्ति

भक्ति श्रद्धावान और भोले भाले व्यक्तित्व की प्रेमिका है | इस प्रेमिका को पाने के लिए सिर्फ एक तत्व की आवश्यकता है, और वो है पूर्ण समर्पण| सांसारिक दृष्टी से देखने पर हमें भक्त और ज्ञानी अलग अलग दिखाई देते है पर सूक्ष्म दृष्टि से दोनों एकही है | ज्ञानी ज्ञान की बाते करते है और कोई भी कर्म बिना अहंकार के नही होता | तो वह ज्ञान का जो थोड़ा बहोत अहंकार होता है तो व्यक्ति के भगवत प्रेम को ढक लेता है जिससे वो स्थूल दृष्टी से हमें ज्ञानी प्रतीत होता है | इसके उलट जब व्यक्ति भगवत प्रेम मे मदमस्त रहता है तो उसे वह ज्ञान का अहंकार नहीं सताता जिससे हमें वो भक्त प्रतीत होता है | वास्तविक दोनों चीजे एकही व्यक्ति मे विद्यमान है पर व्यक्ति के स्वाभाव वश हमें वह अलग अलग प्रतीत होती है |

    भक्त मे एक चीज बड़ी अच्छी होती है उसे किसी भी चीज का कोई अहंकार नहीं होता | और इसी वज़ह से वह भगवत प्रेम के अमृतमय आनंद मे रम मान रहता है | उसे भी अपनी भक्ति का अहंकार हो सकता है,  जैसे नारद को हुआ था पर भगवान हो दूर करने मे देर नहीं लगाते |

   भक्ती का मार्ग काटो से भरा होता है, भक्ती पिया की सेज नही पथरी ली राहो की डगर है.  सच्चे भक्त को भगवान कभी संसार नही देते व उसे संसार से दूर करते चले जाते है जिस का परिणाम क्या होता है कि वो उसे सांसारिक दुखो की प्राप्ति होती है.   ये दुख आयुष्य मे देकर भगवान आपको ये जताना चाहता है की दुनिया एक दुखो का सागर है इसमें मत फस, दुखो को बार बार हमारे  सामने पाके हमें संसार के क्षणभंगुरता का आभास होता रहता है जिससे की हमारे मन मे वैराग्य का भाव सदा बना रहे और उसी से हम आत्मतत्व को जान पाते है| इसका अर्थ यह नहीं की सभी भक्तो के जीवन मे दुख ही रहेंगे |पर मोटे तौर पर आज के परिप्रेक्ष्य मे यह चीज ज्यादा देखि जाती है | यह दुख इतने बड़े  नहीं हो सकते की उसका विनाश ही कर दे | यह तो सिर्फ उस व्यक्ति के कर्मो को काटने के लिए होते है जिससे आगे की राह आसान ही जाये |भाई भक्त के सुख दुख का ख्याल भगवान नहीं तो और कौन रखेगा  आखिरकर उसने पूर्ण समर्पण किया है | लेकिन ऊपर के लेखन का उदेश यही है की जितनी बड़ी भक्त की पात्रता उतनी ही बड़ी उसकी परीक्षा होती है |


       भगवान राम खुद ईश्वर होते हुए भी कोनसा संसारिक सुख उन्हें प्राप्त हुआ, राजकुमार होते हुए भी वनवासी जीवन जिये ,पत्नी से दूर हुए, संग्राम्पूर्ण जीवन, बाद मे भी लोकपवाद के कारण पत्नी का त्याग करना पड़ा| काँटों से भरी राहें रही है उनकी फिर भी हम उनको पूजते है. संत ज्ञानेश्वर के जीवन से बचपन मे ही माता पिता का साया हट गया समाज ने तिरास्क्रूत किया कोनसा सांसारिक सुख पाया उन्होने, भगवान बुद्ध ने ज्ञानप्रप्ति के लिए संसार का त्याग किया और जब वो बोधि हुए तब संसार को तारने के लिए वापस आये. इतिहास मे ऐसे उदाहरण भरे पड़े है जो ये सिद्ध करते है की भगवत प्राप्ति के लिए अपने कन्फर्ट जोन का त्यागकरिये और सांसारिक माया के दूर आकर प्रयत्न करिये.

    जो ऊँगली उठाने वाले लोग ये कहते फिरते है की रोज तो पूजा पाठ करता है फिर भी कुछ फयदा नहीं गरीब का गरीब ही है उन्हें जवाब मिल गया है, पर शायद ही वो इस जवाब को समझ पाए.

   क्योंकि गीता मे स्पष्ट लिखा है की एक योगी की नजर मे जो रात्रि है वो सांसारिक प्राणियों के नजर मे दिन है | और योगी के नजर मे जो दिन है वो संसार वालो के लिए  रात्रि है | इसका सीधा मतलब यही है की सांसारिक लोग जो देखते है वो भ्रम है जिसे वो सुख समझते है वो अपार दुख का कारण है क्षणिक सांसारिक सुख आपको आगे नरक यातानाओ मे पंहुचा सकता है अगर वो अनैतिक हो तो | और जीवन मे आया हुआ दुख आपके कर्म बंधनों को काटने वाली तलवार है | उसके बाद भी आप सही राह ना पकड़ पाए तो फिर से वही फेर | 


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     ईश्वर मनचाहे सांसारिक भोग उसी को देता है जिसे वो चाहता है की इस व्यक्ति को संसार की माया मे भटकाना चाहता है. सुखी धन संपत्ति से युक्त जीवन कभी कभी विलास का कारण बनता है जो की इस प्रबल सांसारिक माया मे भटकते रहने के लिए काफ़ी है. ऊपर ऊपर से जो चमकिला लुभावना सांसारिक सुखो से युक्त जीवन दीखता है वो कीचड़ के सामान है, कीड़ा उसी कीचड़ मे खुद को संतुष्ट मानता है. अगर उस नाली के कीड़े को उठाके चावल पे रख दोगे तो वो दो पल भी नहीं जी पायेगा क्योंकि वो माया से लिप्त है. आप देखिये समाज मे जो तथाकथित इंटेलेक्चुअल लोग जिनकी लाखो रुपयों मे sallary होती है वो लोग घूमने कहा जाते है. वो लोग घूमने गोवा, मोरिशस, मालदिव ऐसी जगह जायेंगे, वो लोग कभी भी काशी प्रयाग केदारनाथ बद्रीनाथ पंढरपुर इन जगह नहीं जायेंगे. क्योंकि माया के वाशीभूत लोगो को माया ही अच्छी लगती है. ये माया पल मे राक्षस पल मे देवता बनाने मे सक्षम है. आज जो ऐशो आराम मे जीवन है कदाचित अगले मे भिखारि हो.

    एक उदाहरण सुनिए महाभारत का कर्ण पिछले जन्म मे एक बड़ा प्रबल राक्षस था उसका वध दोनों जन्म मे कृष्ण और अर्जुन ही करते है. उसने 1000 सालो तक तप करके सूर्य को प्रसन्न किया और अमरत्व माँगा सूर्य ने उसे उसके बजाय 1000 कवच और दिए और कहा की ये कवच कुण्डल होते हुए तुम मारे न जाओगे उसे कोई 1000 साल तप करके ही तोड़ सकता है और उसने तोड़ भी दिया तो वो खुद भी मर जायेगा.

उसके वध के हेतु से हिमालय पे अर्जुन और भगवान श्री कृष्ण अपने पिछले जन्म मे नर और नारायण के रूप मे तप कर रहे थे नर और नारायण एक आत्मा दो शरीर थे. नर ने उस राक्षस को जिसका नाम दम्बोद्भव था युद्ध के लिए आव्हान किया दोनों ने 1000 वर्ष तक तप किया था तो नर ने राक्षस का एक कवच तोड़ दिया उसके तत्काल ही नर की मृत्यु हो गयी तब नारायण ने उसे संजीवनी विद्या से जीवित किया नर तप मे लग गया और नारायण युद्ध करने लगा. 1000 वर्ष के बाद नारायण ने दूसरा कवच तोड़ा और वो खुद मर गया फिर नर ने उसे जीवित किया. यही मरने मारने और जीवित करने का क्रम चलता गया और राक्षस के 999 कवच टूट गए अब वो डर के मारे सूर्यलोक भाग गया सूर्य देव ने उसे शरण दी लेकिन यह शाप भी दिया की उसे अगले जन्म मे सब योग्यता होते हुए भी तिरास्क्रूत जीवन जीना पड़ेगा और वही एक बचा हुआ कवच उसके साथ कर्ण जन्म मे आया  अगर अर्जुन वो कवच तोड़ देता तो वो तत्काल ही मर जाता इसीलिए इंद्र ने कवच कर्ण से ले लिया और वही नर और नारायण अर्जुन और कृष्ण के रूप मे महाभारत के युद्ध मे थे.

      कथा सुनाने का अभिप्राय यह था की महामाया आपको किसी जन्म मे देवता तो किसी मे राक्षस बना दे सकती है किसी मे राजा तो किसी मे रंक बना दे सकती है जैसे की राजा बाली द्वापर मे भील के रूप मे श्री कृष्ण को मारने आया था. तो सांसारिक सुखो दुखोका हिसाब किताब लगाने से क्या लाभ जब भगवान को प्राप्त करने के प्रयत्न ही आपके साथ मरने के बाद जायेंगे.


    ये दुनिया तो एक रंगमंच है जिसकी स्क्रिप्ट लिखी जा चुकी है डायलॉग लिखें जा चुके है. आपको करैक्टर के कपडे परिधान करके सिर्फ परफॉरमेंस करना बाकि है. परफॉरमेंस ख़त्म होने के बाद उसे उतार फेक कर अपने वास्तविक रूप मे आना है और उसी वास्तविक रूप को परिषकरूत करनेके प्रयत्न हमें करना चाहिए. करैक्टर का मेक अप पोतने से क्या लाभ, वो तो दो पल का साथी है.  इस रंगमंच के नाटक का हीरो आपका मन है हीरोइन आपकी बुद्धि है, और डायरेक्टर है आपकी आत्मा (चेतना ). अज्ञाणवश हम यही समझते है की सब कुछ हीरो हीरोइन ही कर रहे है, दूसरा कौन कर्ता है?  पर हम इस बात को भूले रहते है की हीरो हीरोइन तो मात्र कठपुतलीया है सब कुछ तो डायरेक्टर के कहने मात्र से होता है. मन रूपी हीरो को अगर अपनी पिक्चर की happy ending करानी है तो बुद्धि रूपी हीरोइन का सहारा लेना ही पड़ेगा | यह भी निर्भर कर्ता है की हीरोइन अच्छी है या नहीं मतलब वह सद्बुद्धि है या दूरबुद्धि | अगर हीरोइन अच्छी है और वह हीरो को सही मार्ग दिखाएगी तो निश्चित ही happy ending होंगी नहीं तो वही हीरोइन हीरो की बर्बादी का कारण बन सकती है | 

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